बच्चों को अच्छी आदतें सिखाने के साथ उन्हें खुद भी अपनाना है जरूरी

बच्चे हमारी बात नहीं मानते, उन्हें समझाने का कोई असर नहीं होता, हमेशा मनमानी करते हैं…अधिकतर पेरेंट्स को अपने बच्चों से यही शिकायत रहती है। …लेकिन क्या कभी किसी अभिभावक ने यह जानने की कोशिश की है कि उनकी कुछ बातें, व्यवहार और आदतें बच्चों को भी खटक सकती हैं। आखिर वे अभिभावकों से क्या उम्मीदें रखते हैं।

सीख पर खुद भी अमल करें

परिवार के माहौल का बच्चों की सोच पर गहरा असर पड़ता है। अक्सर बड़ों को ऐसा लगता है कि बच्चे नासमझ होते हैं पर वास्तव में ऐसा नहीं है। वे घर में माता-पिता के व्यवहार और छोटी-छोटी बातों को बहुत ध्यान से देखते हैं। हम अपने बच्चों को सोशल एटिकेट्स का पाठ तो खूब पढ़ाते हैं पर खुद उस पर अमल करना भूल जाते हैं। बच्चे छोटी-छोटी बातों पर बड़ी बारीकी से गौर करते हैं। माता-पिता उनके आदर्श होते हैं, इसलिए वे उनकी इमेज को लेकर बहुत सजग रहते हैं। वे पेरेंट्स से यही उम्मीद रखते हैं कि आसपास के लोग उनके अच्छे व्यवहार की प्रशंसा करें। इससे बच्चे को गर्व महसूस होता है, उसका आत्मविश्वास बढ़ता है। जिस तरह हमें अपने बच्चों का अनुशासनहीन व्यवहार परेशान करता है, ठीक वैसे ही हमारी छोटी-छोटी गलतियों के कारण बच्चे भी दूसरों के सामने शर्मिंदगी महसूस करते हैं। इसलिए अब हम अपने व्यवहार को लेकर बहुत संयत रहते हैं।

कोई सुने हमारी बातें

आजकल महानगरों की न्यूक्लियर फैमिली में एक या दो ही बच्चे होते हैं। ऐसे में वे माता-पिता के साथ अपने स्कूल और दोस्तों से जुड़ी ढेरी सारी बातें शेयर करना चाहते हैं। यह सच है कि कामकाजी दंपतियों के पास समय की कमी होती है। फिर भी बच्चे की अच्छी परवरिश उनकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। आमतौर पर यह देखा गया है कि ऑफिस से घर पहुंचने के बाद अधिकतर पेरेंट्स टीवी देखने, मोबाइल पर बातें करने या अन्य घरेलू कार्यों में व्यस्त हो जाते हैं। इससे बच्चे खुद को बहुत अकेला महसूस करते हैं। इसलिए हर अभिभावक की यह जि़म्मेदारी बनती है कि बच्चों की पढ़ाई और होमवर्क के अलावा वह उनके साथ हलकी-फुलकी बातचीत के लिए समय ज़रूर निकालें। बच्चे पेरेंट्स से यह भी उम्मीद रखते हैं कि वे उनकी बातें ध्यान से सुनें। उनके दोस्तों, स्कूल और खेल-खिलौनों से जुड़ी छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान ढूंढने में उनकी मदद करें।

फटकार नहीं, प्यार चाहिए

बड़े हमेशा अपने आत्मसम्मान की बात करते हैं पर वे बच्चों को कहीं भी, कभी भी सबके सामने डांटना शुरू कर देते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि बच्चों में भी आत्मसम्मान की भावना होती है। बड़ों के बुरे व्यवहार से वे भी खुद को अपमानित महसूस करते हैं। बच्चों को अनुशासित व्यवहार सिखाना बहुत ज़रूरी है पर इसके लिए पेरेंट्स को संयमित और मर्यादित तरीका अपनाना चाहिए।

टेक्नोलॉजी का हस्तक्षेप

आज के दौर में लोगों के पारिवारिक जीवन पर मोबाइल और इंटरनेट का असर हावी होता जा रहा है। क्वींसलैंड स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी की एक रिपोर्ट बताती है कि आजकल लोग ‘टेक्नोफेरेंस’ (टेक्नोलॉजी के हस्तक्षेप) से प्रभावित हैं। मोबाइल के साथ ज्यादा समय बिताने की वजह से उनकी दिनचर्या, प्रोफेशनल लाइफ और रिश्तों पर इसका नकारात्मक प्रभाव स्पष्ट रूप से नज़र आ रहा है। यह लत इतनी गंभीर हो चुकी है कि लोग रात में सोते समय भी मोबाइल को तकिये के पास रखते हैं। अब बच्चों को बेड टाइम स्टोरी सुनाने का चलन खत्म हो चुका है। माता-पिता सोशल मीडिया पर चैटिंग करने में व्यस्त रहते हैं। बच्चे उन्हें अपने स्कूल और दोस्तों के बारे में बताना चाहते हैं पर पेरेंट्स के पास उनकी बातें सुनने की फुर्सत ही नहीं होती, ऐसे में पेरेंट्स के साथ उनके रिश्ते में स्वाभाविक रूप से दूरी आने लगती है। आज के बच्चे भी अपने माता-पिता से यही उम्मीद रखते हैं कि ऑफिस से घर लौटने के बाद वे मोबाइल, लैपटॉप जैसे गैजेट्स के साथ समय बिताने के बजाय उन पर ध्यान दें और उनके साथ रिलैक्स होकर बातचीत करें।

 

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