टॉपर्स ने बताईं वे 5 गलतियां, जो सीए फाइनल एग्जाम को क्रैक करने से रोकती हैं

एजुकेशन,  इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) ने नवंबर 2019 में आयोजित सीए फाइनल परीक्षा के परिणाम 16 जनवरी को जारी कर दिए। इसमें ओल्ड स्कीम के तहत परीक्षा में शामिल कैंडिडेट्स का ओवरऑल पास पर्सेंटेज 10.19 प्रतिशत रहा जबकि न्यू स्कीम के तहत परीक्षा में शामिल हुए कैंडिडेट्स का ओवरऑल पास पर्सेंटेज 15.12 प्रतिशत है।

साफ हैं कि देश की प्रतिष्ठित परीक्षाओं में से एक इस परीक्षा का पास पर्सेंटेज लगातार कम बना हुआ है। भरपूर मेहनत के बावजूद कुछ छोटी-छोटी गलतियां बड़ी संख्या में स्टूडेंट्स को एग्जाम क्रैक करने से रोक देती हैं।

इस सिलसिले में परीक्षा के टॉपर्स का भी अनुभव है कि वाकई कुछ सामान्य गलतियां भी मार्जिन से परीक्षा को पार करने की राह में रोड़ा बन जाती हैं। पिछले सालों के परीक्षा परिणामों में टॉप थ्री पोजिशन पर रहे पांच टॉपर्स यहां बता रहे हैं उन गलतियों के बारे में जो इस परिणाम के स्तर को बढ़ने से रोकती हैं-

टॉपर्स की इन सलाह पर करें गौर

  1. ज्यादा घंटे यानी ज्यादा आउटपुट

    • अतुल अग्रवाल- वर्ष 2018 ऑल इंडिया रैंक-1

    एक आम धारणा है कि जितने ज्यादा से ज्यादा घंटे पढ़ेंगे उतना ही रिजल्ट बेहतर होगा। जबकि घंटों का आउटपुट से कोई लेना देना नहीं है। इसके बजाय आप सीमित लेकिन निर्धारित टाइम टेबल से पढ़ाई करें तो अच्छे परिणाम मिल सकते हैं। इसके लिए आप सीए के तीन हिस्सों फाउंडेशन, इंटर और फाइनल में की जाने वाली पढ़ाई के समय को घंटों में बांट लें। फाउंडेशन में अमूमन 4 से 5 घंटे, इंटर में 8 से 10 घंटे और फाइनल में अंतिम छह माह में 8 से 10 घंटे की न्यूनतम पढ़ाई करनी ही होगी। याद रखें कम समय के बावजूद फोकस्ड पढ़ाई आपको शानदार परिणाम दे सकती हैं।

  2. एरर को नजरअंदाज करना

    • अगम संदीप भाई- वर्ष 2018 ऑल इंडिया रैंक-2

    प्रैक्टिस करते समय जो भी एरर या गलती करते हैं, अगर उस पर ध्यान नहीं देते तो यह आपके एग्जाम स्कोर पर बुरा असर डाल सकता है। इसके बजाय आपको गलतियों के लिए अलग से नोटबुक तैयार करनी चाहिए। जब भी आप फाइनल एग्जाम देने जाएं तो उस बुक को जरूर देखें। साथ ही रिवीजन के दौरान भी इन गलतियों को याद रखना चाहिए। इसका फायदा यह होगा कि परीक्षा में वे गलतियां नहीं दोहराई जाएंगी। इसके अलावा इंटर और फाइनल की तैयारी के समय क्रमश: 3 और 6 महीने का समय मिलता है। इस दौरान कम से कम 10 से 12 घंटे की पढ़ाई नियमित रूप से की जानी चाहिए।

  3. फाउंडेशन क्लियर तो फाइनल भी हो ही जाएगा

    • राज पारेश- वर्ष 2017 ऑल इंडिया रैंक-1

    यह एक आम भ्रम है कि फाउंडेशन एग्जाम पास कर लिया है तो फाइनल भी हो ही जाएगा। जबकि फाउंडेशन पास कर लेने पर अति उत्साहित होना आगे की तैयारी पर असर डाल सकता है। दरअसल एक सीए स्टूडेंट के रूप में आगे की तैयारी के लिए आपको विशेष एहतियात बरतना होगा। इसके साथ ही सोशल मीडिया डिस्ट्रैक्शन भी काम बिगाड़ सकता है। सोशल मीडिया के बिना चार घंटे की पढ़ाई 14 घंटे के बराबर परिणाम दे सकती है।

    याद रखें आप अंदाज भी नहीं लगा सकते कि जरूरत से ज्यादा सोशल मीडिया का इस्तेमाल तैयारी को बेकार कर सकता है। यही वजह है कि सोशल मीडिया यूज करते हुए पढ़ने वाले स्टूडेंट्स को लगता है कि वे पढ़ तो रहे हैं, लेकिन परिणाम नहीं आ रहे हैं। इसके लिए सबसे सही तरीका है सेल्फ कंट्रोल। सलाह सोशल मीडिया को बिल्कुल छोड़ देने की नहीं है, लेकिन इसका समय निर्धारित होना चाहिए।

    फाउंडेशन के दौरान अगर एक से डेढ़ घंटा सोशल मीडिया पर बिताते हैं तो फाइनल आते-आते यह अवधि 30 मिनट से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।

  4. किसी भी तरह सिलेबस पूरा होना चाहिए

    • पवन गुप्ता, वर्ष 2017 ऑल इंडिया रैंक-3

    बड़ी संख्या में ऐसे स्टूडेंट्स हैं, जो आखिरी दिन तक सिलेबस पूरा करने की जद्दोजहद में लगे रहते हैं। वे रिवीजन को नजरअंदाज कर देते हैं। वैसे परीक्षा से कम से कम 35 दिन पहले पूरा सिलेबस खत्म हो जाना चाहिए। इसके बाद हर सब्जेक्ट के रिवीजन को कम से कम 4 दिन देने चाहिए । चूंकि फाइनल में आठ सब्जेक्ट होते हैं, ऐसे में कुल 32 दिन में सिलेबस का रिवीजन हो जाना चाहिए और बचे हुए 3 दिन में अपनी कमियों का रिवीजन किया जाना चाहिए। फाइनल तक पहुंचते-पहुंचते चीजों को समझने की क्षमता बढ़ जाती है इसलिए इन निर्धारित दिनों में पूरा रिवीजन किया जा सकता है। लेकिन अगर आखिर तक आप सिलेबस पूरा नहीं कर पाए हैं तो आपको अपनी उस तैयारी का रिवीजन जरूर करना चाहिए।

  5. केवल कोचिंग के भरोसे रहना

    • अगाथी स्वर्ण- वर्ष 2017 ऑल इंडिया रैंक-3

    आज भी अधिकांश स्टूडेंट्स से सबसे बड़ी गलती यह होती है कि वह सेल्फ स्टडी और संस्थान के सिलेबस को छोड़कर कोचिंग के चक्कर लगाते है, जबकि सबसे पहले तो छात्र को यह तय करना चाहिए कि इंस्टीट्यूट का सिलेबस और किताबें सबसे महत्वपूर्ण हैं। उन्हें ही सबसे पहले पूरा किया जाना चाहिए। इसके बाद ही कोचिंग की सलाह लेनी चाहिए। अगर स्टूडेंट्स टार्गेट फिक्स कर इन नियमों का पालन करते हैं तो उन्हें सफल होने से कोई नही रोक सकता।

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