कांग्रेस ने 11 साल पहले आडवाणी का लिखा पत्र साझा किया

 

दिल्ली | देश के मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) की नियुक्ति प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) की भूमिका खत्म करने की मांग विपक्ष लगातार कर रहा है। इस बीच, कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने शुक्रवार को तत्कालीन भाजपा संसदीय दल के अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखे गए 2012 के एक पत्र को साझा किया, जिसमें ऐसी नियुक्तियों के लिए व्यापक आधार वाले कॉलेजियम का सुझाव दिया गया था। पत्र में आडवाणी ने मांग की थी कि सीईसी और अन्य सदस्यों की नियुक्ति पांच सदस्यीय पैनल या कॉलेजियम द्वारा की जानी चाहिए, जिसमें प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश, संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के नेता और कानून मंत्री शामिल हों। आडवाणी ने दो जून, 2012 को पत्र में लिखा था कि मौजूदा प्रणाली, जिसमें चुनाव आयोग के सदस्यों को केवल प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है, लोगों में विश्वास पैदा नहीं करता है। इस पर उस समय सरकार सभी राजनीतिक दलों की राय लेने के लिए तैयार थी। मनमोहन सिंह ने कहा था कि वह चुनाव सुधारों के तहत चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में बदलाव के लिए तैयार हैं। सुधारों पर CPI नेता गुरुदास दासगुप्ता के एक पत्र का जवाब देते हुए, सिंह ने कहा था कि मैं यह बताना चाहूंगा कि मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति, इस्तीफे तथा हटाने की प्रक्रिया सरकार द्वारा निर्धारित की गई है। यह लंबे समय से अस्तित्व में है। उन्होंने कहा था कि प्रक्रिया में किसी भी बदलाव के लिए अन्य राजनीतिक दलों के साथ व्यापक चर्चा की आवश्यकता होगी। यदि आवश्यक हुआ तो इसे चुनावी सुधारों के एजेंडे के एक हिस्से के रूप में लिया जा सकता है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा लाया गया विधेयक न केवल आडवाणी द्वारा प्रस्तावित प्रस्ताव के खिलाफ है, बल्कि इस साल दो मार्च को पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ के फैसले के विपरीत है। उन्होंने कहा कि चुनावी वर्ष में मोदी सरकार की ओर से उठाया गया यह कदम इस बात की पुष्टि करता है कि मोदी चुनाव आयोग पर नियंत्रण सुनिश्चित करना चाहते हैं।सरकार द्वारा जारी विधेयक के अनुसार, सीईसी का चयन तीन सदस्यीय पैनल द्वारा किया जाएगा। इसमें प्रधानमंत्री, दो सदस्य- लोकसभा में विपक्ष के नेता या सदन में सबसे बड़ी पार्टी के नेता और पीएम द्वारा नामित एक कैबिनेट मंत्री शामिल होगा।

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