सबसे बड़ी घंटी बनाने वाले इंजीनियर की हादसे में हुई मौत: UIT के अधिकारी घंटी निकालने के लिए करते थे परेशान

 

राजस्थान के कोटा में रिवर फ्रंट पर रविवार दोपहर 3 बजे मोल्ड बॉक्स से घंटी निकालते हुए इसे सांचे में ढालने वाले इंजीनियर देवेंद्र आर्य और उनके सहयोगी छोटू की मौत हो गई। इसके बाद देवेंद्र के बेटे धनंजय आर्य (24) ने कोटा यूआईटी को सवालों को घेरे में खड़ा कर दिया है।

उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा- मेरे पिता पर यूआईटी अधिकारियों ने बहुत प्रेशर बनाया हुआ था। चुनाव से पहले घंटी को सांचे में से बाहर निकालने का दबाव बनाते थे। पिताजी दीपावली पर घर (जोधपुर) आ गए थे। इसके बावजूद भी उन्हें यूआईटी अधिकारियों के फोन आते थे। कहते थे- 25 नवंबर से पहले घंटी बाहर निकालनी है, धारीवालजी का बहुत प्रेशर है।

 

 

इधर यूआईटी के एक्सईएन कमल कान्त मीणा का कहना है कि हमारी ओर से कोई प्रेशर नहीं था। उन्होंने दावा किया कि हमें मालूम ही नहीं था कि वे रविवार को काम करने आए हैं। वहीं जब इस मामले को लेकर UDH मंत्री शांति धारीवाल से बात करने को कोशिश की तो उनकी टीम ने कहा कि मंत्री जी इस मामले पर बात नहीं करेंगे।

बता दें कि इस हादसे की जांच कोटा ADM सिटी ब्रज मोहन बैरवा को सौंपी गई है। वे जांच कर इसकी रिपोर्ट जिला कलेक्टर को पेश करेंगे।

 

 

रविवार दोपहर को हुए हादसे के बाद करीब 5 बजे निजी अस्पताल में देवेंद्र आर्य ने दम तोड़ दिया। उनके बेटे धनंजय आर्य ने आरोप लगाया है कि उनके पिता पर यूआईटी अधिकारी प्रेशर बना रहे थे। बेटे धनंजय आर्य का आरोप है कि घंटी को चुनाव से पहले खोलने के लिए प्रेशर बनाया जा रहा था। बेटे ने आरोप लगाते हुए बताया- मेरे पिता वर्ल्ड की सबसे बड़ी घंटी बना रहे थे जो रिवर फ्रंट पर लगाई जानी थी। उसकी ढलाई का काम 17 अगस्त को ही पूरा कर चुके थे। उसके बाद से ही उन पर दबाव बनाया जा रहा था कि इसको खोलो, क्योंकि रिवर फ्रंट का उद्घाटन सीएम को करना था।

 

 

बेटे ने आरोप लगाते हुए कहा- पिताजी ने मना कर दिया कि यह ठंडा नहीं होगा तब तक नहीं खुलेगा, बड़ी चीज है। इसके बाद जो चीफ आर्किटेक्ट अनूप बरतरिया था, उसने पिताजी को प्रोजेक्ट से यह कहकर बाहर निकाल दिया कि वह खुद इसे निकलवा देंगे। रिवर फ्रंट का उद्घाटन हो गया। इसके बाद जब किसी से घंटी नहीं निकाली गई तो पिताजी के पास फोन आने लगे। कोटा से फोन कर यूआईटी के अधिकारी पीछे पड़ गए कि आप ही आकर इसे खोलो। बार-बार कहने लगे तो पिताजी फिर 3 नवंबर को कोटा आ गए।

 

 

पिताजी के कुछ रुपए भी बाकी थे जिसे यूआईटी को देना था। इसके बाद कोटा आकर उन्होंने साइट पर जाकर निरीक्षण किया और मोल्ड बॉक्स से एक दो गार्डर (लोहे के एंगल-बॉक्स) खोल दिए। इसके बाद उन्होंने अधिकारियों से कहा कि अब यह दिवाली के बाद ही पूरी तरह खुल पाएगा। क्योंकि इसे खोलने में जल्दबाजी नही कर सकते, घंटी को नुकसान हो सकता है। इसके बाद भी उन पर यह दबाव बनाया जा रहा था कि इसे जल्द खोलना है। बार-बार कॉल करके कहते कि 25 नवंबर को वोटिंग है, उससे पहले घंटी को मोल्ड बॉक्स से बाहर निकालना है। इस दौरान पिताजी दीपावली पर घर (जोधपुर) आ गए थे। इसके बाद भी उनके पास बार बार कॉल आते थे कि धारीवाल जी का प्रेशर है, घंटी को जल्दी बाहर निकालना है।

 

 

 

फोन कौन करता था इस सवाल पर धनंजय ने बताया कि- जैसा पिताजी बताते थे, उन्हें यूआईटी के अधिकारियों और कलेक्टर के फोन आते थे। हालांकि वह ज्यादा हमें भी कुछ नहीं बताते थे। वह कहते थे- बार बार फोन कर कह रहे हैं कि प्रेशर है इसे चुनाव से पहले खोलो, 26 बॉक्स है। सरकार उनकी ही आ रही है, नहीं खोला तो… बस बार-बार यही कहते थे कि नहीं तो… नहीं तो…।

इस दौरान मेरे पिता जी की शुगर चार सौ तक बढ़ गई, बीपी हाई रहने लगा था। शनिवार को भी दो तीन बार कॉल आए थे। ऐसे में बार-बार परेशान होने के चलते रविवार को सुबह 7 बजे ही वे कोटा आए थे। मैं भी उनके साथ ही आ गया था।

 

 

 

धनंजय ने बताया कि सुबह 7 बजे के करीब हम कोटा पहुंचने के बाद होटल गए। वहां पिताजी ने तैयार होकर नाश्ता किया। इसके बाद वह साइट पर पहुंच गए थे। मैं भी दोपहर में साइट के पास ही था। तब वह मोल्ड बॉक्स पर चढ़कर गार्डर हटाने का काम करवा रहे थे।

यह हादसा टेंशन और यूआईटी की जल्दबाजी का नतीजा है। पिताजी खुद कहते थे कि बार-बार ये लोग फोन कर रहे हैं दबाव बना रहे हैं। इतनी जल्दी यह काम नहीं हो सकता। चार पांच घंटे में एक गार्डर को निकाला जाता है। मेरे पिता के रूपए भी बाकी थी।

 

 

 

बेटे ने आरोप लगाया कि पुलिसकर्मियों ने भी अपनी मर्जी से पोस्टमार्टम रूम में पंचनामा पूरा कर लिया। अपनी मर्जी से पुलिसकर्मी लिखवाने की कोशिश कर रहे थे। अब कह रहे हैं कि बॉडी लेकर तुरंत जोधपुर चले जाओ। अब घर में मां, दो बहन और मैं ही रह गया हूं। मेरे पिता के नाम कई रिकॉर्ड थे, इसलिए लोग उनसे जलते भी थे। फोन कौन करता था, उनका नाम क्या था यह नहीं पता। जितना पिता बताते थे उतना ही बता सकता हूं।

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार मोल्ड बॉक्स को जोड़ने के लिए लोहे के एंगल (गार्डर) इसके चारों तरफ लगाए गए थे। उनको हाइड्रोलिक क्रेन की मदद से निकाला जा रहा था। इस दौरान मोल्ड बॉक्स के ऊपर देवेन्द्र आर्य और छाेटू खड़े थे। इसी दौरान क्रेन का पट्टा टूट गया और मोल्ड बॉक्स पर लगा लोहे का एंगल भी तीन जगह से टूट गया। इससे छोटू नीचे गिरा और गार्डर के नीचे दब गया और देवेन्द्र आर्य भी नीचे गिर गए।

 

 

 

यूआईटी के एक्सईएन कमल मीणा ने बताया कि हमारी तरफ से कोई दबाव ही नहीं था। दबाव क्यों होता जब रिवर फ्रंट का उद्घाटन तो हो ही चुका था। रविवार को देवेन्द्र के कोटा आने की जानकारी हमें नहीं थी। वह बिना बताए आकर साइट पर काम करने चले गए। उस दौरान गार्डर को उठाने के दौरान तीन तरफ से टूट गई, जिसकी वजह से हादसा हुआ। देवेन्द्र के बेटे की तरफ से जो आरोप लगाए जा रहे है, गलत है। उल्टा वह दिवाली पर जब घर गए थे तब यह कहकर गए थे कि मैं पंद्रह नवंबर को कोटा आकर पांच सात दिन में इसे खोल दूंगा। जबकि हमें भी पता है कि इसे खोलने में समय लगेगा। किसी ने कोई दबाव नहीं बनाया।

इधर जब हमने मंत्री धारीवाल से बात करने की कोशिश की तो उनके पीआर टीम ने कहा कि इस मामले में मंत्रीजी कुछ नहीं कहेंगे। इसके बारे में यूआईटी के ही अधिकारी बता सकते है।

 

 

 

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