धाकड़ महिलाएं चला रहीं है ऑटो,एक पंच से सिखा रही हैं मनचलों को सबक,जानिए कहाँ

राजस्थान के कोटा की रहने वाली रेखा बरौली 7 साल से अपने पति से अलग रह रही हैं। घर चलाने और दो बच्चों की जद्दोजहद और दोनों बच्चों को कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाने का सपना लिए रेखा ने ऑटो का स्टेयरिंग थाम लिया। जिम्मेदारियों ने रेखा कंधे मजबूत किए तो ऑटो ने उनके बाजूओं को ताकत दी। किसी मनचले की क्या मजाल जो रेखा को घूरता रहे और फब्तियां कस के सही सलामत चला जाए। रेखा की तरह मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग लेने के बाद 18 महिलाएं आज बेखौफ होकर सड़कों पर ऑटो दौड़ाती हैं।

इनके ऑटो में बैठने वाली हर सवार महिला भी खुद को महफूज मानती है। जितनी मजबूती से ये महिलाएं अपनी घर की जिम्मेदारी निभा रही हैं। उससे कहीं ज्यादा मजबूर इनकी परिस्थितियां थीं। नजमा बीना, रेखा और रानी जैसी धाकड़ महिलाओं से हमारी टीम ने बात की तो उनके संघर्ष की कहानी सामने आई

बनाना चाहती हैं बच्चों को डॉक्टर

विज्ञान नगर की रेखा बरौली 2017 से ऑटो चला रही हैं। करीब सात साल पहले पारिवारिक विवाद के चलते पति-पत्नी अलग हो गए। परिवार चलाने के लिए पहले एक हॉस्टल में काम किया। लेकिन वहां सिर्फ 6 हजार तनख्वाह मिलती थी। इससे न तो घर ठीक से चल सकता था और न ही बच्चों की पढ़ाई हो सकती थी। इसी दौरान कोटा ऑटो यूनियन के सम्पर्क में आयी। पता लगा कि कोटा में पिंक ऑटो चलाये जा रहे है। रेखा ने ऑटो चलाना सीखा और अब ऑटो ही चलती है। रेखा 12वी पास है। रेखा का कहना है कि बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए ऑटो चला रही है। दिन में 10 घंटे से ज्यादा काम करना पड़ता है। रोज के कम से कम पांच सौ रुपये की कमाई हो जाती है। दो बेटे और एक बेटी है दोनों इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ रहे हैं।

पति ने साथ छोड़ा मां बाप और बेटे की जिम्मेदारी
प्रेम नगर की रहने वाली नजमा की कहानी भी ऐसी ही है। 12वीं पास नजमा और उनके पति के बीच विवाद था। आज दोनों अलग रहते हैं। ऐसे में मां-बाप और बेटे की जिम्मेदारी नजमा के कंधों पर ही है। नजमा ने बताया कि पहले वह कंप्यूटर ऑपरेटर का काम करती थी। लेकिन सैलरी अच्छी नहीं मिलती थी। अकेली महिला के लिए घर चलाना इतना आसान नहीं। बच्चे को भी पढ़ाना है। इसलिए कोटा ऑटो यूनियन से जुड़ गई और ऑटो चलाना सीखा। फिर लोन पर खुद का ऑटो खरीदा। आज अपने पैरों पर खड़ी हूं। किसी की कोई पाबंदी नहीं है। रोज पांच से छह सौ रुपये कमा लेती हूं। कभी-कभी कम भी होती है। लेकिन परिवार के लिए भी समय रहता है और घर अच्छे से चल रहा है।

लूंगी ऑटो के साथ ही फेरे
रायपुरा की रहने वाली रानी कंवर चार साल से ऑटो चला रही है। रानी के पिता को कैंसर था। जब इसका पता लगा तो परिवार पर बड़ी आपदा जैसे आ गयी। घर में तीन बहने जिनमे दो की शादी हो गयी। ऐसे में घर चलाने और पिता के इलाज के लिए जिम्मेदारी रानी पर आ गई। रानी आठवीं तक पढ़ी है। कम पढ़ाई में कहीं अच्छी नौकरी मिलना मुश्किल था। महिलाओं को ऑटो चलाते देखा तो खुद ने भी सीखा। ढाई साल पहले पिता की मौत हो गई। अब मां को अकेले संभालनी हैं। रानी कहती हैं कि लड़के वाले देखने आते हैं तो वह शर्त रखती हैं कि शादी के दौरान ऑटो से भी फेरे लेने पड़ेंगे। क्योंकि जब वह मुसीबत में थी पैसो की जरुरत थी तब ऑटो ने ही उसका साथ दिया। पिता के इलाज के लिए पैसे ऑटो चलाकर ही आये। इसलिए ऑटो को कभी भी नहीं छोड़ सकती।

पति से तलाक के साथ ही परेशानियां हुई शुरू
विज्ञान नगर की रहने वाली आरती भी ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं है। पति से करीब 6 साल पहले तलाक होने के बाद से परेशानियां शुरू हो गई। दो बच्चे हैं। उन्हें पालना और पढ़ाना बड़ी जिम्मेदारी थी। माता-पिता से भी सम्पर्क नहीं है। बच्चों को पालने के लिए पहले घरों में बर्तन मांजे फिर सब्जी बेची। लेकिन कमाई इतनी नहीं हो पाती थी कि घर का किराया भी दें और बच्चों को पढ़ा भी सकें। ऐसे में ऑटो चलाना सीखा। वहीं रायपुरा की बीना की भी कहानी ऐसी ही है। पति से अलग हुए 10 साल से ज्यादा का समय हो गया। घर में बीना और उनकी मां है। बेटी की शादी कर दी है। घर खर्च चलाने के लिए बीना दिन में 12 घंटे ऑटो चलाती हैं।

ले रखी है मार्शल आर्ट की भी ट्रेनिंग
बदमाशी हर शहर की समस्या है। महिलाओं के साथ छेड़छाड़ तो आम बात है। लेकिन इनसे निपटने के लिए ऑटो चलाने वाली महिलाओं को मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग भी दिलवाई गई है। महिला ऑटो चालकों ने बताया कि कई बार अपराधी प्रवृत्ति के लोग भी आकर बैठ जाते हैं। ऐसे लोगों से निपटने के लिए वह पूरी तरह तैयार हैं। हालांकि आज तक कोई अनहोनी जैसी बात नहीं हुई। एक बार जरूर एक दूसरे ऑटो चालक ने महिला चालक रेखा पर कुछ टिप्पणी कर दी थी। छोटी सी बात को लेकर उनकी बहस हो गई थी। मारपीट की नौबत भी आ गयी थी। लेकिन ऑटो वाले ने वहां से भागना ही ठीक समझा। इन धाकड़ महिलाओं का कहना है कि वह सवारी को देख कर ही बैठाती हैं। लेकिन अब उन्हें डर नहीं लगता। हर स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहती हैं।

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